सुरभि
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हर शाख पे
बैठ गए हैं उल्लू
खुदा ! खैर हो |
बुरे हैं नेता
हैरानी किसलिए
आदमी वे भी |
विकल्प कहाँ
जनता के सामने
राजनीति में |
अच्छे व्यक्ति थे
राजनीति में कूदे
बुरे हो गए |
न कर्म में है
न शुचिता सोच में
वस्त्र सफेद |
मिले सबको
वो हाथ जोडकर
नेता ही होगा |
खादी जारी है
फैंक चुके चरखा
कूड़ेदान में |
* * * * *
—– दिलबाग विर्क
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