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ग़ज़ल (कांटेस्ट )

सुरभि
सुरभि
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चक्करघिन्नी-सा हर रोज़ घुमाया है
दिल ने यारो सबको नाच नचाया है |

हाल सुनाना मुश्किल, बस सुन लो इतना
कजरारे नैनों ने चैन चुराया है |

चांदी-सी चमकीली किरणें बिखरी हैं
देखो तुम जर्रा-जर्रा मुस्काया है |

तुझको भूल गया जब खुद को याद किया
खुद को भूला हूँ जब तुझको पाया है |

अब दिल पर कोई रंग चढ़ेगा कैसे
इस पर जब उल्फ़त का रंग चढ़ाया है |

रोआं-रोआं गाता गीत मुहब्बत के
‘ विर्क ‘ बता ये कैसा रोग लगाया है |

—- दिलबाग

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