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ग़ज़ल ( कांटेस्ट )

सुरभि
सुरभि
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इसको तेरे बिन कुछ भी दिखता कब है

पागल दिल मेरा, मेरी सुनता कब है ।

कोई शख्स हसीं इसको बहका न सका

ये दिल अब और किसी को चुनता कब है ।

ये आशिक तेरे दर पर मरना चाहे

काबा माने बैठा है, उठता कब है ।
बस तुझको पाना ही है मकसद मेरा

बिन इसके दिल और दुआ करता कब है ।
‘विर्क’ भले अपना मिलना लगता मुश्किल

पर उम्मीदों का सूरज ढलता कब है ।

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